Thursday, December 24, 2009

शिविर में आज दूसरा दिन....

आज शिविर का दूसरा दिन है .......आज का विषय है "समझ "
क्या चीज को समझना है? समझने लायक चीज क्या है?
जब हम समझ कह रहे हैं तो कोई चीज तो होगी?



जैसे यह मोबाइल है इससे हम अपनी बात दूसरों तक पहुंचाते हैं पर यह मोबाइल क्या है यह तो समझ में आये! .....


पूरी प्रकृति में ४ अवस्थाएं हैं और इससे ज्यादा समझने की कोई चीज हो सकती है? पांचवी है नहीं।
यही समझने की कोई चीज की चीज है।
क्या आपने कभी यह समझने की कोशिश की है कोई भी वस्तु कैसे बनी है? जब किसी पदार्थ(द्रव्य/matter) को उदाहरण के लिए नमक को देखते हैं यह अणुओं से मिलकर बना है एक अणु दो परमाणुओं से मिलकर बना है सोडियम (Na)और क्लोरिन (Cl)।
अब चलिए सोडियम परमाणु से पूछते हैं कि आपका निर्माण कैसे हुआ है?
नमस्कार..... मै हूँ सोडियम परमाणु। सबसे पहले तो मै आपको यह बता दूँ कि कोई भी परमाणु अकेला नहीं रह सकता। वे हमेशा क्रिया शील होते हैं और किसी ना किसी परमाणु के साथ बंध बनाने की कोशिश करते रहते हैं ....




अब मुझे देखिये....मेरे केंद्र में धन आवेशित कण जिन्हें प्रोटोन और ऐसे कण जिनमें कोई आवेश नहीं होते जिन्हें न्युट्रॉन कहते हैं उपस्थित होते हैं मेरे ३ कक्षा हैं पहली कक्षा में दो इलेक्ट्रॉन जो ऋण आवेशित होते हैं चक्कर लगते रहते हैं, दूसरी कक्षा में ८ इलेक्ट्रॉन और तीसरे में १ इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते हैं और वे लगातार नाभिक के चारों ओर परिक्रमा करते रहते हैं। मै तभी संतुष्ट होऊंगा जब मेरे कक्षा में कम से कम २ या ८ इलेक्ट्रॉन हो।
यह १ इलेक्ट्रॉन को निकाल देना ज्यादा आसान है बजाय ७ लेने से। तो मेरे सामने क्लोरिन भाई हैं उनको मै अपना १ इलेक्ट्रॉन देकर एक साझा बंध बना लेते हैं।
आओ क्लोरिन भाई....




मै आ गया सोडियम भाई हाँ तुम मुझे अपना एक इलेक्ट्रॉन दे दो बड़ी मेहरबानी होगी क्योंकि मेरे आखरी कक्षा में ७ इलेक्ट्रॉन हैं जिन्हें निकाल पाना मेरे लिए असंभव है बजाय एक किसी से ले लेने से। तो मै आपसे एक इलेक्ट्रॉन लेना ज्यादा पसंद करूँगा भाई...
और इस प्रकार सोडियम और क्लोरिन आपस में मिलकर नमक का एक अणु तैयार करते हैं व ऐसे ही कई अणु मिलकर नमक के ढेले तैयार करते हैं।
तो हमें यह समझ में आया कि पदार्थ में तात्विक रूप में परमाणु (atom)है और परमाणु अकेला रहता नहीं है आपस में मिलकर अणु (molecule) बना लेते हैं। अणु इससे भी बड़ी संरचना बनाते हैं जैसे पेड़ पौधे और जीवों में एक कोशिका (cell) फिर उतक (tissue) और फिर अंगों का निर्माण होता है फिर एक धरती और एक सौरमंडल इस तरह से फैला हुआ संसार।

तो एक चीज हमें यहाँ समझ आती है की मुख्यत: हमें होने को समझना है।
"Whatever exist?"
क्या हैं? ४ अवस्थाएँ हैं
ये ४ अवस्थाएँ आपस में एक व्यवस्था है।
तो अस्तित्व (Existance) कैसा है?

"हर इकाई स्वयं में व्यवस्था है "एक परमाणु (atom) से लेकर पूरे ब्रम्हांड तक। और "वह समग्र व्यवस्था में भागीदार है।"
इस कथन का प्रमाण क्या है?
"Every unit is in order by itself and has define role in the bigger order."
Evidence?
[यहाँ पर श्री राकेश जी ने हमारा ध्यान इन मुद्दों पर आकर्षित कराया है जिसे मै आपके सामने प्रस्तुत करना चाहती हूँ :-
"तीन मुद्दों पर ध्यान-आकर्षण कराना चाहूँगा:
१. मध्यस्थ-दर्शन के प्रस्ताव के अनुसार परमाणु में भागीदारी करने वाले सभी परमाणु-अंश एक ही प्रकार के होते हैं. प्रचलित-विज्ञानं मानता है - मध्य में परमाणु-अंश धन-आवेश या निरावेश स्थिति में होते हैं, और परिवेशीय अंशों में ऋण-आवेश होता है. जबकि यहाँ कहा जा रहा है - हर परमाणु-अंश एक ही प्रकार का है. प्रचलित-विज्ञानं ने आवेश के आधार पर खींच-तान से परमाणु की संरचना है - ऐसा प्रतिपादित किया है. यहाँ कहा जा रहा है - परमाणु-अंश के सत्ता में संपृक्त होने के कारण ऊर्जा-सम्पन्नता है, फल-स्वरूप चुम्बकीय बल-सम्पन्नता है, और उनमें व्यवस्था में होने के लिए प्रवृत्ति है. इसीलिए अनेक परमाणु रचनायें पदार्थ-अवस्था के स्वरूप में स्थापित हुई. (प्रचलित-विज्ञानं ने हस्तक्षेप विधि से परमाणु का अध्ययन किया, इसलिए उसको आवेश और खींच-तान में होना घोषित किया.)
२. यौगिक क्रिया में भाग लेने वाले दोनों परमाणु अपने अपने आचरण को त्याग कर तीसरे तरह का आचरण स्वीकार करते हैं. इस तरह ऐसा नहीं है - सोडियम में से कुछ परमाणु-अंश चले गए, और क्लोरीन में कुछ परमाणु-अंश समा गए. सोडियम और क्लोरीन अपने अपने आचरण को त्याग कर संयुक्त हो कर नमक के आचरण को स्वीकार लिए. यह मनुष्य को समझ में आता है.
३. पहचानना और निर्वाह करना पदार्थ-अवस्था में भी देखा जाता है. लेकिन उसको देखने वाला आदमी है. पदार्थ-अवस्था की इकाइयां "देख" कर पहचानती हों, ऐसा नहीं है. देखने वाली इकाई केवल और केवल जीवन ही है. देखने का मतलब समझना ही है. मानव में ही "समझने" (जानने और मानने) की आवश्यकता है. इसी अर्थ में मानव नमक की व्यवस्था को समझना चाहता है. मानव के नमक को समझने का प्रयोजन है - नमक के साथ अपनी उपयोगिता और पूरकता को सिद्ध करना. "]

5 comments:

Creative Manch said...

क्या बात है रोशनी जी
बहुत खूब ..... बहुत सुन्दर
आपने तो बिलकुल क्लास ही लगा दी
और आपके समझाने का ढंग ...लाजवाब

बेहतरीन पोस्ट
शुभ कामनाएं

Rakesh Gupta said...

तीन मुद्दों पर ध्यान-आकर्षण कराना चाहूँगा:

१. मध्यस्थ-दर्शन के प्रस्ताव के अनुसार परमाणु में भागीदारी करने वाले सभी परमाणु-अंश एक ही प्रकार के होते हैं. प्रचलित-विज्ञानं मानता है - मध्य में परमाणु-अंश धन-आवेश या निरावेश स्थिति में होते हैं, और परिवेशीय अंशों में ऋण-आवेश होता है. जबकि यहाँ कहा जा रहा है - हर परमाणु-अंश एक ही प्रकार का है. प्रचलित-विज्ञानं ने आवेश के आधार पर खींच-तान से परमाणु की संरचना है - ऐसा प्रतिपादित किया है. यहाँ कहा जा रहा है - परमाणु-अंश के सत्ता में संपृक्त होने के कारण ऊर्जा-सम्पन्नता है, फल-स्वरूप चुम्बकीय बल-सम्पन्नता है, और उनमें व्यवस्था में होने के लिए प्रवृत्ति है. इसीलिए अनेक परमाणु रचनायें पदार्थ-अवस्था के स्वरूप में स्थापित हुई. (प्रचलित-विज्ञानं ने हस्तक्षेप विधि से परमाणु का अध्ययन किया, इसलिए उसको आवेश और खींच-तान में होना घोषित किया.)

२. यौगिक क्रिया में भाग लेने वाले दोनों परमाणु अपने अपने आचरण को त्याग कर तीसरे तरह का आचरण स्वीकार करते हैं. इस तरह ऐसा नहीं है - सोडियम में से कुछ परमाणु-अंश चले गए, और क्लोरीन में कुछ परमाणु-अंश समा गए. सोडियम और क्लोरीन अपने अपने आचरण को त्याग कर संयुक्त हो कर नमक के आचरण को स्वीकार लिए. यह मनुष्य को समझ में आता है.

३. पहचानना और निर्वाह करना पदार्थ-अवस्था में भी देखा जाता है. लेकिन उसको देखने वाला आदमी है. पदार्थ-अवस्था की इकाइयां "देख" कर पहचानती हों, ऐसा नहीं है. देखने वाली इकाई केवल और केवल जीवन ही है. देखने का मतलब समझना ही है. मानव में ही "समझने" (जानने और मानने) की आवश्यकता है. इसी अर्थ में मानव नमक की व्यवस्था को समझना चाहता है. मानव के नमक को समझने का प्रयोजन है - नमक के साथ अपनी उपयोगिता और पूरकता को सिद्ध करना.

धन्यवाद,
राकेश.

Roshani said...

क्रिएटिव मंच आपका स्वागत है हम तो आपके जैसे ही शिविरार्थी है अभी अध्ययनरत हैं....और जो मैंने समझा या बताना चाहा उसे आप सभी के साथ बाँट रही हूँ ....
धन्यवाद....

Roshani said...

श्री राकेश जी आपने सही समय पर मार्गदर्शन किया....इसके लिए सहृदय आभार....
आपने एक नमक के अणु को प्रचलित-विज्ञानं एवं मध्यस्थ दर्शन(जीवन विद्या) के दृष्टिकोण से समझाया.
आपने बताया दोनों परमाणु सोडियम और क्लोरिन दोनों अपने अपने आचरण त्याग कर तीसरे तरह का आचरण स्वीकार करते हैं.
जैसे सोडियम अत्यंत क्रियाशील होता है वह वायु में यदि जरा सा भी नमी हो तो क्रिया करने लगता है जबकि क्लोरिन गैस होती है यह दोनों अपने इस आचरण को त्याग कर संयुक्त होकर नमक के आचरण को स्वीकार कर लिए.
तो यहाँ हमें नमक की व्यवस्था तो समझ आती है और इसे समझने के साथ मानव की नमक के साथ अपनी उपयोगिता और पूरकता को सिद्ध करने का प्रयोजन भी समझ आता है.
या हम कहें इस सृष्टि में उपस्थित सभी इकाइयों को समझना और मानव के साथ उसकी उपयोगिता और पूरकता को सिद्ध करना ही समझ है.

श्याम जुनेजा said...

हे परम !
तू भरम या मैं ?