Saturday, February 20, 2010

"स्वयं में विश्वास और प्रयास....."

वर्तमान शिक्षा प्राप्त करने के लिए १८ और २० साल आपने अपने लगा दिए क्या अब भी हममें दो रोटी कमाने का आत्मविश्वास आ पाया है?
सोम भैया कहते हैं १८-२० साल लेकर हम (वर्तमान शिक्षा प्रणाली) उसमें दो रोटी कमाने का आत्मविश्वास नहीं आ पाता।

नौकरी लग गई तो हमको लगता है कुछ हो गया नहीं मिले तो road पर खड़ा रहे देखिये उसकी क्या हाल है ?

शायद ये मै नहीं कह रहा है कि सब कुछ गलत है लेकिन इसमें काफी gaps है उन gaps को भरने की जरुरत है। अब यदि हम देखे तो मै आपके सामने एक question रखता हूँ समझ का content सबके लिए एक है या अलग है।

समझ की विषय वस्तु सबके लिए एक है।

सोम भैय्या कहते हैं जितने लोग इस धरती से चले गए उनके लिए भी यह चार अवस्थाएं थी हमारे लिए भी यह चार अवस्थाएं थी जितने लोग और पैदा होने होने वाले हैं उनके लिए भी यही चार अवस्थाएं हैं। यही समझने का content है।

और ये चारों अवस्थाएं हिन्दू धर्म के हिसाब से काम करते हैं या मुस्लिम धर्म के हिसाब से?

कोई धर्म को follow नहीं करती है। ये प्रकृति धर्म को follow करते हैं।

एक परमाणु हिन्दू है कि मुस्लिम झंझट नहीं है एक परमाणु परमाणु है स्वयं में एक व्यवस्था है समग्र व्यवस्था में भागीदार है।

एक नीम का पेड़ चाहे हिन्दू के घर हो या मुस्लिम के घर में है। उसका एक निश्चित आचरण है। एक लोहे को हिन्दू बनाये कि मुस्लिम बनाये उसका एक निश्चित आचरण है। हर चीज अपने निश्चित आचरण के साथ है यह हमारी स्वीकृति बनती है। इस आधार पर हम इस पर विश्वास कर पाते हैं।
लोहे पर हमको बहुत विश्वास है लोहे का मूड ख़राब हो जाये। आज रविवार है आज नहीं उठाऊंगा इधर हमको विश्वास है। आदमी का कब मूड ख़राब हो जाये कब क्या करेगा? यह बिलकुल एक दूसरी बात है।
समझ में आता है कि हम विश्वास कहाँ कर पाते हैं? जड़ वस्तुओं पर, क्यों?

क्योंकि उनका आचरण निश्चित है तो जिसका आचरण निश्चित है हम उसके प्रति विश्वास कर पाते हैं।
क्या हम खुद पर विश्वास कर पाते हैं?

आचरण निश्चित नहीं है कभी भी जितना विचार हमको उठता है जितनी सारी इच्छाएँ हमको उठती है जिन लोगों के लिए उठती हैं। एक दिन जाकर उनको बता दिया जाये।
मेरे मन में तुम्हारे बारे में यह यह विचार आते हैं।
मेरे मन में तुम्हारे बारे में यह यह इच्छा होती है।
कैसा रहेगा?
तो मै खुद पर विश्वास कर नहीं पाता हूँ क्योंकि मुझे पता है कि मेरा आचरण निश्चित नहीं है।
मेरे भीतर कितने प्रकार की उटपटाँग बाते उठती रहती है इसलिए खुद पे विश्वास नहीं कर पाता हूँ तो सब ऐसे ही है ऐसे आदमी के साथ जीना मुश्किल है ऐसी स्वीकृति हमारी बनी हुई है।
तो अब क्या लगता है समझ सबके लिए एक ही चीज है या सबके लिए अलग अलग चीज है ?
एक ही चीज
!
फिर ये अलग अलग क्या था?
देखने का नजरिया।
कैसा?
४ अंधों ने हाथी देखा, आँख खोल के देखा होता तो पूरा हाथी जैसा है वैसा देखा होता तो हम जब दृष्टि कोण देखते हैं तो मेरी एक बात और मुझे समझ आई ये अच्छे विचार जीने के कोई काम नहीं आते हैं ये मै उस सन्दर्भ में कहना चाहता हूँ जिस सन्दर्भ में हम लोगों ने चर्चा की थी की बुरे नहीं हैं। इनको हम अच्छा लोग मान रहे थे अभी तक और हम क्या कहते हैं "अच्छे लोग तो पीसते हैं" ऐसा कुछ बोलते हैं कि नहीं?
अच्छे आदमी का तेल निकला जायेगा, अच्छे आदमी का शोषण होगा तो क्या कोई अच्छा आदमी बनना चाहेगा? और क्यों बनना चाहिए
बिलकुल नहीं बनना चाहिए और इसलिए अच्छे लोगों कि संख्या को भी देखना पड़ेगा। तो अब समझ में आया कि वो अच्छा था नहीं और जो suffer करते हैं वो इसलिए suffer करते हैं क्योंकि वे बुरों में शामिल हो नहीं सके ऐसा कहिये...अच्छे भी बन नहीं सके इसलिए बेचारा चौराहे पर खड़ा है।
इसकी पहचान ना इधर बन पाई इधर (बुरे ) आ जाता तो पहचान बनने का एक तरीका है! इधर (समझदार) हम पहुंचना चाहते हैं पहुँचने का रास्ता स्पष्ट नहीं है तो मुख्यत: अच्छा आदमी का मतलब है जिसको कोई Exploit ना कर सके वह किसी को exploit ना करता हो ऐसी हम सारी प्रार्थनाओं में भी बोलते हैं।
तो अब यह समझ में आता है जिसको हम अभी तक अच्छा आदमी बोल रहे थे वो अच्छा होना चाहता है अच्छा अभी है नहीं। अच्छा होने के बाद कोई दूसरा आपका शोषण कर ले कोई उद्योगपति आपको काम पर लगा ले क्योंकि हमारे भीतर भी कोई ना कोई लालच रहता है या हमारे भीतर यह स्पष्टता नहीं है कि मुझको करना क्या है?तो मै कहीं ना कहीं शामिल होऊंगा चुप तो बैठूँगा नहीं। कहीं ना कहीं शामिल होगा जिसमें वह शामिल होगा वह धरातल लाभोन्माद, भोगोन्माद और कामोन्माद का ही है।

Wednesday, February 17, 2010

कुछ प्रश्न स्वयं से करें?

* वर्तमान शिक्षा प्राप्त करने के लिए १८ और २० साल आपने अपने लगा दिए क्या अब भी हममें दो रोटी कमाने का आत्मविश्वास पाया है?

* अगर हमारी नौकरी चली गई तो हमारा क्या हाल होगा?

* समझ का विषयवस्तु क्या है? और क्या सबके लिए एक है या अलग -अलग?

* चार अवस्थाएं किस धर्म के हिसाब से काम करते हैं?

हिन्दू धर्म/मुस्लिम धर्म/प्रकृति धर्म

* हम जड़ वस्तुओं पर मानव से ज्यादा विश्वास कर पाते हैं क्यों?

क्या हम खुद पर विश्वास कर पाते हैं

हाँ/नहीं

नहीं? तो क्यों?

* आदमी हाथी को आँख बंद करके देखा तो क्या देखा ?

* फिर से वही प्रश्न दोबारा

समझ का विषयवस्तु सबके लिए एक या अलग -अलग।

* हम किस श्रेणी में आते हैं?

बुरे हैं/बुरे नहीं है/अच्छे हैं/समझदार हैं

* क्यों कहा जाता है?

" अच्छे लोग पीसते हैं।"

Good People is always suffer.

* क्या स्वयं के भीतर यह स्पष्टता बन पाई है कि करना क्या है?

* चुप तो बैठना नहीं है शामिल तो होना ही है पर कहाँ हो रहे हैं?

कहीं वह धरातल लाभोंमाद, भोगोंमाद और कामोन्माद का तो नहीं?
अगर ऐसा है तो भैया अपने को संभालो।
यह जीवन दोबारा नहीं मिलने वाला अभी समझ लो।