Wednesday, September 29, 2010

कार्य और व्यवहार

एक ने कहा जी कर देखना....
तो हम चीजों को जांचेंगे, जी कर देखने का मतलब है.... कार्य और व्यवहार
व्यवहार (Behaviour)-
मानव का मानव के साथ सुख़ की अपेक्षा में किया गया श्रम। (इसे जाँचें. Universality को जाँचना है )
इसे जाँचें...
जाँचिये ऐसा है कि नहीं? अपने भीतर ही झाँकिये, एक एक लाईन आपकी जिंदगी का Explanation है इसलिए जांचने का काम गहराई से किया जाये।
एक सूत्र है लिख लीजिये.....
गुरु मूल्य में लघु मूल्य समाया रहता है "
गुरु मतलब बड़ा, लघु मतलब छोटा और मूल्य मतलब सुख़। २०,००० की नौकरी में २००० वाला शामिल है, तो मुझको बड़ा सुख़ मिलता है तो मैं छोटी चीजों के पीछे क्यों भागूँगा?
कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है या कुछ पाने के लिए कुछ invest करना पड़ता है।
कार्य (Work) -
मानव का शेष प्रकृति (मनुष्येत्तर प्रकृति ) के साथ आवश्यक किया गया श्रम।
(Behaviour is towards happiness, work is getting towards the physical things, mainly we are talking about production (material) activity. )
व्यवहार - मानव का मानव के साथ
कार्य- मानव का Non human के साथ
व्यवहार का सारा मतलब सुख़ पाने के लिए है , कार्य का सारा मतलब physical thing/ सुविधा प्राप्त करने के लिए )
आदमी की जिंदगी की सारी उपलब्धियों का Nutshell कहें तो केवल एक शब्द "स्वयं के प्रति के विश्वास"।
मैं बहुत Power चाहता हूँ, मैं बहुत पैसा चाहता हूँ, मैं बहुत नाम चाहता हूँ, मैं बहुत ज्ञान चाहता हूँ ....
आख़िरकार सब कुछ यह है ..."मेरे भीतर जो अधुरापन है मेरे भीतर जो खालीपन है या जो विश्वास की कमी है या जो डर है, insecurity है मैं उससे मुक्त हो जाउँ।
सारा मामला इतना ही है मैं अपने अधिकार पे जीता हूँ तो स्वयं के प्रति विश्वास को पाता हूँ।
अभी वर्तमान में, हमारा जीना स्वयं के अधिकार पे नहीं है।
एक तरफ या तो यंत्र के अधिकार पे है विज्ञान ऐसा बोलता है instrument ऐसा कहता है या वो किसी शास्त्र के आधार पर है वेद ऐसा बोलता है, गीता ऐसा बोलती है.......
मैं भी कुछ बोल सकता हूँ ऐसा space बहुत कम है।
समझने के लिए ये ४ अवस्थाएँ हैं प्रकृति अपने- आप में/ स्वयं में एक व्यवस्था है, हर ईकाई स्वयं में व्यवस्था और समग्र व्यवस्था में भागीदार है, समझने का unlimilted potential मेरे पास है और हर आदमी के भीतर inherent capability है कि वो चीजों को समझ सके, जाँच सके।
और उसके भीतर से यह आवाज़ आती है हाँ ये तो ऐसा ही है। It is like this only. "ये ऐसा ही है वह पहचान पाता है" इस क्षमता को हम इस्तेमाल कर सकें और अपने अधिकार पे जीने की जगह में आ सकें।
कार्य सही है तो इसका cross check क्या होगा?
यदि कार्य सही है तो परिवार में समृधि (Prosperity in family) और प्रकृति में संतुलन (Balance in nature) होगा।
इससे ज्यादा क्या हो सकता है इससे कम में क्या चलेगा? तो इससे ज्यादा कुछ होता नहीं इससे कम में कुछ चलता नहीं, इतना चाहिए।
यदि व्यवहार सही है तो उसकी पहचान क्या होगी?
दोनों पक्षों का सुख़।

अभी हम अच्छा व्यवहार करते हैं और सामने वाले का response नहीं है तो मुझे क्या लगता है? क्या कमी रह गई?
मुझसे कोई गलती हो गई क्या? Everyone has same problem.
इस धरती पर कोई भी आदमी बिना payment के काम नहीं करता है। एक माँ भी अपने बच्चे की सेवा क्यों करती है? उसको क्या payment मिलता है? बच्चे की मुस्कराहट माँ के लिए payment है।

Thursday, September 23, 2010

रास्ता क्या है?

करके समझना बहुत महंगा है। जैसे एक, करके समझना- अच्छा मकान हो जाये जिंदगी बन जाये।
इसको पूरा करने में कितना समय लगेगा? साल, साल या फिर १० साल। यह करके समझ आया कि मुझे यह नहीं चाहिए था।
फिर और कोई मान्यता!
इस प्रकार एक एक मान्यता हमारे जिन्दगी के कई साल ले लेती है जब हम वहां पहुँचते हैं तो हमें पता चलता है कि यह वह नहीं है!... या यह पर्याप्त नहीं है।
तो इस तरह hit n trial करके जिन्दगी को जिया जाये या एक सुनिश्चित मार्ग पर चलकर जिन्दगी जिया जाये। समझकर जीना भी जिन्दगी जीने का राजमार्ग है। सारे समय और क्षमता को बचाकर हम सुन्दर तरीके से जी सके और मुझको वहां पहुँच के लगे मैं यहीं पहुंचना चाहता था।
यही है! यही है! यही है!......

और उसको गुणित भी किया जा सकता है क्योंकि जब तक कोई चीज गुणित नहीं होती हमारे भीतर वह विश्वास नहीं आता है कि यह सही है। सही होगी तो सबकी जरूरत होगी। सबकी जरूरत होगी तो गुणित होगी।

Tuesday, September 21, 2010

जीना कैसा होगा?

अधिमुल्यन, अवमूल्यन या अमुल्यन करते हैं तो इसके आधार पर हमारा जीना कैसा होगा?
कठिन होगा, सामंजस्य नहीं होगा। ना आदमी के साथ सामंजस्य होने वाला है ना बाकि चीज के साथ।
सोम भैय्या ने आगे कहा -
अधिमुल्यन, अवमूल्यन और अमुल्यन को कहा D.P.T. "दुःख पाया टूरिस्ट" :)
हम सभी यात्री हैं सुख़ की तलाश में निकले हुए। हम जो चीज जैसी है उसको वैसा नहीं पहचान पाते, सामंजस्य पूर्वक नहीं जी पाते हैं तो दुःख पाते हैं, परेशां होते हैं।
इसको हमने सम्मानजनक भाषा दे दिया "Struggle" और इसे परिभाषित भी कर दिया।
Struggle मेरी और दूसरों की मूर्खताओं का परिणाम है प्रकृति में कोई struggle नहीं है।
हर इकाई स्वयं में व्यवस्था है समग्र व्यवस्था में भागीदार है।
सारा Struggle आदमी आदमी के बीच है,
क्या है बीच में?
"आप मुझको नहीं समझते हो?"
"मैं आपको नहीं समझता हूँ इतना ही Struggle है।
तो एक बात समझ में आई....... समझ सबके लिए एक है। चार अवस्थाओं का समझना ही समझ है।
अस्तित्व अपने आप में एक सह अस्तित्व है। हर इकाई अपने में व्यवस्था है समग्र व्यवस्था में भागीदार है और नहीं समझ पाते हैं तो अधिमुल्यन, अवमूल्यन और अमुल्यन करते हैं और परिणाम में दुःखी होते हैं।
तो क्या है रास्ता?
(मध्यस्थ दर्शन पर आधारित शिविर -श्री सोम त्यागी द्वारा प्रस्तुत)