वर्तमान शिक्षा प्रणाली क्या उत्पन्न कर रही है?पढ़े - लिखे हुनरमंद (skilled) मजदूर !चाहे वह इंजीनियर के नाम पर हो या मेडिकल के नाम पर।
एक इंजीनियर को देखिये उसके पास यह दृष्टि ही नहीं है कि मेरे यह काम करने से प्रकृति पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
उसका सारा ध्यान केवल पैसे पर होता है जो उसके हुनर का ज्यादा पैसा देगा उसके लिए वह कार्य करेगा। चाहे प्रकृति का कुछ भी हो , ऐसा क्यों? क्योंकि हमारे शिक्षा में ऐसा भाग लगभग गायब है।
"यह शिक्षा व्यवस्था समाज को कितना प्रभावित कर रही है ? "आप आगे और देखेंगे।
समस्या की पहली जड़ अर्थशास्त्रहम अर्थशास्त्र पढ़ते
हैं..."आवश्यकताएं असीम है साधन सीमित है।" (रॉबिन्सन के अनुसार)
ऐसा लगभग ९०% लोगों का मानना है यदि मान भी लिया जाए कि उपरोक्त वाक्य सही है तो यह मानव के भीतर सुरक्षा को जन्म देगा कि असुरक्षा को ?
"
असुरक्षा को" जन्म देगा!
और असुरक्षा आदमी को अंदर से भयभीत कर देगी परिणामस्वरूप वह
संग्रह करने लगेगा।
संग्रह करने के लिए क्या करेगा?"
शोषण"
"ऐसा मैं चाहता नहीं हूँ मज़बूरी है करना पड़ेगा !"
शोषण से
विरोध होगा, विरोध से
विद्रोह ,विद्रोह से
युद्ध और युद्ध से
असुरक्षा और भय।एक आदमी जो अपने को अच्छा मानता है वह जब संग्रह करता है तो शोषण उसकी मज़बूरी बन जाती है।
ऐसा क्यों?
वर्तमान अर्थशास्त्र हमें पढ़ा क्या रहा है?
"आवश्यकताएं असीम हैं साधन सीमित"
इससे आदमी सुखी होगा कि दुखी?
तो कुल मिलाकर अर्थशास्त्र घोषणा करके कहता है कि
"धरती के हर मानव का दुखी रहना निश्चित है "
इस विषय को पढ़ाने वाला सुखी रहने के लिए पढ़ाता है और क्या पढ़ाता है? दुखी रहना निश्चित है।
"इससे बड़ा मजाक आदमी के साथ क्या हो सकता है?"
यहाँ समस्या तभी पूरी होगी जब आवश्यकताएं पूरी हों।समस्या की दूसरी जड़
मनोविज्ञान इसमे सबसे ज्यादा जो सिद्धांत प्रचलित हुआ था फ्रॉयड का -
"मानव के समस्त क्रियाकलाप का केन्द्र काम है।"
ये भी क्या गजब की बात है कि इस देश में मन, आत्मा, बुद्धि और दर्शन पर इतना गंभीर कार्य हुआ है और हमारे शिक्षा तंत्र में इसमें से कुछ भी नहीं दिखता।इनमे से कोई भी दर्शन हमारे regular शिक्षा का हिस्सा नहीं है।
समस्या की तीसरी जड़समाजशास्त्र (sociology)इसमें एक Theory आयी डार्विन की
"Srvival of the fittest"बलशाली जीतेगा "जिसकी लाठी उसकी भैंस" बोलचाल की भाषा में।
Money Power, Arms Power, Muscle Power जिसके पास होगा वह दुनिया चलाएगा तो अमेरिका के पास ये सबसे ज्यादा है तो वह U.N.O. चलाएगा।
या आप कहें जिसे जीना है उसके पास यह होना चाहिए ...
Money Power, Arms Power, Muscle Power को इकट्ठा करने के लिए शोषण करना मेरी मजबूरी है उससे जो कुछ होता है वह हमारे सामने है।
दो भाइयों के बीच यही होता है, दो देशों के बीच यही होता है ,दूसरी धरती मिली नहीं है मिली होती तो यही होता।
ये हमें व्यवस्था की ओर ले जा रहा है कि अव्यवस्था की ओर ले जाएगा?************************************************************
इस मान्यता "मानव के क्रिया कलाप का केन्द्र काम है" क्या इस मान्यता के साथ एक बहन अपने भाई पर विश्वास कर पायेगी?
एक बेटी अपने पिता के साथ विश्वासपूर्वक जो पायेगी?
और भी उदहारण आपको परिवारों में देखने को मिलेंगे? जो इस मान्यता के परिणाम स्वरूप घटित होते हैं।
तो यह व्यवस्था की ओर ले जा रहा है की अव्यवस्था की
ओर?**********************************************************
* ये अर्थ शास्त्र किस तरह की मनोवृत्ति पैदा कर रहा है?
"लाभोन्माद अर्थात लाभ का उन्माद"यह अर्थशास्त्र लाभोन्मादी अर्थशास्त्र है। उन्माद मतलब पागलपन, लाभ के उन्माद को पैदा करता है और Best talent को हम किसी कंपनी के मुनाफे के लिए घुसा देते हैं।
देश के best talent का काम किसी कंपनी के मुनाफे को बढ़ाना है या देश को व्यवस्थित करना है ?
हम किधर भेज रहें है सारी की सारी पीढ़ी को?
* और
एक मानसिकता " कामोन्माद" जो दिया जाता है मनोविज्ञान द्वारा।तो यह हुआ
"कामोन्मादी मनोविज्ञान"* इस तरह से समाज शास्त्र को क्या कहा जाएगा? आसपास के कई उदाहरण देखने के बाद यह बात देखने में आती है कि हमारे जीने की शैली उपभोग की ओर जाती है।
तो यह हुआ
"भोगोन्मादी समाजशास्त्र"****
तो हम इस तरह ३ भूत "लाभोन्माद, कामोन्माद और भोगोन्माद" को आदमी के सर पर बिठा कर रखे हैं।अब इन तीनों भूतों के सवार होने के बाद आदमी चाहे कुछ भी बने इंजीनियर, डॉक्टर, राजनीतिज्ञ चाहे प्रवचन भी करता हो कहीं भी जाए अंतत: व्यवस्था में शामिल होगा की अव्यवस्था में ?
ये अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान और समाजशास्त्र जब घर में बीवी से झगड़ा हो तो कोई काम नहीं आता। सिर्फ़ पैसा बनाने के काम आता है मतलब जीने में नहीं है तो वह कुछ और ही है।
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ये ३ भूत को जो हम वर्तमान शिक्षा में डालकर रखें है जिसका उत्पाद यह है।
"शिक्षित है पर समझदार नहीं" ********
अब इन 4 मॉडल को देखिये (यह सोम भैय्या द्वारा सर्वे किया गया है):-
१) सही करके सफल हुआ जाए?
२)ग़लत करके सफल हुआ जाए?
३) असफल हुआ जाए सही करके?
४)या असफल हुआ जाए ग़लत करके?* ९०% बच्चों में दूसरा मॉडल देखने को मिलेगा इनमें लड़कियां भी शामिल हैं।
"कुछ भी करके सफल होना है" फ़िर यह भी कहेंगे "इतना कुछ ग़लत नहीं करना चाहते जो बहुत ज्यादा ग़लत हो!"
*५-६ बच्चे ऐसे भी मिल जायेंगे जो तीसरे मॉडल को पालन करते मिल जायेंगे "हम सही करना चाहते हैं चाहे असफल क्यों ना हो जाए" लेकिन जब ये जिन्दगी की दौड़ में शामिल होंगें तो कितना टिक पाएंगे ?...
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तो हमने पहला मॉडल "सही करके सफल हुआ जाए" दिया ही नहीं है।
आज आदमी किसी भी कीमत पर सफल होना चाहता है आज अगर उसके पास पहले मॉडल होता तो १००% आदमी इसे पालन करते।
अभी तो सफलता का पैरामीटर तय नहीं है इस पर clear vision बने, नियम बने तब ऐसा होगा।
पर ऐसा नहीं है !!
और इन तीनों भूत के सवार होने पर व्यवस्था कहाँ जायेगी इसकी आप कल्पना कर सकते हैं।
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समाज में
४ तरह के लोग हैं।
पहले लोग जो गलती करते हैं मतलब भ्रष्टाचार, लड़ाई झगड़ा, खून खराबा, चोरी आदि।
दूसरे लोग जो गलती नहीं करते मतलब नशा नहीं करते आदि।
तीसरे लोग अच्छा सोचते हैं, भ्रष्टाचार कैसे रोका जाएगा इस पर सेमिनार भी करते हैं और भी इस तरह की बहुत सारी बातें।
चौथे लोग मानव और प्रकृति के साथ तालमेलपूर्वक जीते हैं।
*दूसरे और तीसरे को आप अच्छा आदमी कह सकते हैं लेकिन चौथे प्रकार के लोगों को क्या कहेंगे?
"समझदार"
इससे कम में आदमी क्या अच्छा होगा? और दूसरे, तीसरे प्रकार के लोग अच्छा होने के लिए प्रयासरत हैं।
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सोम भैया ने आगे कहा .....
इस बात पर इतना बल इसलिए दिया जा रहा है की यदि मुझे लगता है कि...
*मुझको जहाँ पहुंचना था मैं तो पहुँच गया हूँ मुझे तो और प्रयास नहीं करना।
*मैं यह सोचता हूँ कि ईमानदार हूँ तो ऐसा सब करने के बाद हम अपने को अच्छा मान बैठते हैं
*आगे सोचते हैं औरों को भी अच्छा बनाना है कैसे?
चलो समाज में कुछ ऐसा कर दिखाते हैं जिसको देख समाज प्रभावित हो और बहुत से लोग ऐसा सोचने लगे, करने लगे।
बहुत दिन बाद पता चलता है कि यदि ऐसा कुछ काम कर लिया तो आप पूज्यनीय बन जाते हैं गुणित (multiply) नहीं हो पाते।
आदरणीय नागराज जी कहते हैं कि
"पूज्यनीय होना एक धीमी आत्महत्या के सामान है "
आप पूज्यनीय इसलिए हो रहे हो क्योकि आप गुणित नहीं हो पा रहे हैं इसका मतलब आप अकेले हो।
यदि आप गुणित होते तो ऐसे कई लोग होते।
* अर्थात हम जिसे आदर्श मानव कह रहे हैं जिसे हम साधू या पूज्यनीय कह रहे हैं मतलब ऐसा होने के प्रति हमारा विश्वास कहीं खोया हुआ है।
*एक आदमी यदि मानव के साथ तालमेलपूर्वक नहीं जी पाता है तो क्या वह एक छत के नीचे ठीक से जी पायेगा?
और दूसरी बात यदि कोई आदमी मानव के साथ ठीक से नहीं जी पाता तो क्या वह प्रकृति के साथ ठीक से जी पायेगा?
* क्या मानव और प्रकृति के साथ तालमेल में जीने से कम में आदमी जी पायेगा?
इससे ज्यादा कुछ हो नहीं सकता इससे कम में चलेगा नहीं तो अच्छा आदमी किसे बोलें?
* हम अपने परिवार , अपने आसपास के लोगों और जहाँ से आप तनख्वाह पाते हैं के लिए सब कुछ कर रहे हैं हम कुछ गलती भी नहीं करते फ़िर भी हमें तृप्ति नहीं मिलती ...
मतलब जो मानव फलाना - फलाना गलती नहीं करते वो "अच्छा आदमी" नहीं कह सकते तो हम उन्हें यह कह सकते हैं...
"बुरे नहीं है..."*
हम वो पढ़े लिखे समाज हैं जो " बुरे नहीं है।"
* हमने ज्यादा से ज्यादा क्या किया?
Technology में आगे बढ़ गए हैं और आदमी की जगह यह काम नहीं आती।
* परिवार में झगड़ा हो तो यह सब डिग्रियां धरी की धरी रह जाती है।
* पिछला ३०० या ५०-१०० साल में जो मानव का मानव के साथ जो development हुआ वह यह कि "मानव को मशीन के साथ जीने कि योग्यता आ गई है।"
मशीन है निपट लेगी।
मानव का मानव के साथ जीने का विश्वास कम हुआ है और मशीन के साथ जीने का विश्वास बढ़ने के कारण
हम "one man family" की ओर बढ़े हैं। * "Mass hypnotism each and everyone of us is partially and fully hypnotized."
हम सब सम्मोहित हैं किससे?इन तीनों भूतों (लाभोन्माद, कामोन्माद और भोगोन्माद) और दूसरा १०१ चैनल से जो ३ भूतों का पोषण करते हैं और ऐसा ही जीने की जीवन शैली देते हैं। यही सफलता है यही सब कुछ है।
* हमारे अन्दर अध्यात्मवाद और भौतिकवाद के बीच युद्ध चलता रहता है। एक तो हमारा अध्यात्मवाद के प्रति आस्था है ....दूसरा भौतिकवाद में ऊँचाई को छूने की लालसा है।
- जब हम बोलते हैं तो धर्म और अध्यात्मवाद पर बोलते हैं जब हम जीते हैं तो भौतिकवाद में जीते हैं।
- हमारी आस्थाएं अध्यात्मवाद में है हमारी जीने की विवशता भौतिकवाद में है।
अभी की शिक्षा मानवीय है कि अमानवीय?
यह अमानवीय शिक्षा है!!!
* आप भौतिक शास्त्र, रसायनशास्त्र,इन्जीनियरिंग आदि किसी भी विषय पर कितना भी अच्छा पढ़ाये कुल मिलाकर हम एक पढ़ा लिखा मजदूर तैयार कर रहे हैं जो अंतत: ३ भूतों की सवारी करके किसी ना किसी को शोषण करने के लिए जाने- अनजाने इस system में मजबूर होगा।
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तो अब तक हमें यह बातें पकड़ में आयी.....
* हुनर (skill) समझ नहीं।
* सुविधा भी समझ नहीं।
*सुचना भी समझ नहीं।
* शासन व्यवस्था नहीं।
*वर्तमान शिक्षा -
३ भूतों को शास्त्रों (लाभोन्मादी अर्थशास्त्र, भोगोन्मादी समाजचेतना और कामोन्मादी मनोविज्ञान) के रूप में स्थापित किया है इसका नाम वर्तमान शिक्षा है।
* चाहत से योग्यता बदल जाए, चाहत को हम जी सके इसका नाम शिक्षा है।
* विकास का अर्थ ४ अवस्थाओं में संतुलन सुनिश्चित होना है।