Tuesday, September 21, 2010

जीना कैसा होगा?

अधिमुल्यन, अवमूल्यन या अमुल्यन करते हैं तो इसके आधार पर हमारा जीना कैसा होगा?
कठिन होगा, सामंजस्य नहीं होगा। ना आदमी के साथ सामंजस्य होने वाला है ना बाकि चीज के साथ।
सोम भैय्या ने आगे कहा -
अधिमुल्यन, अवमूल्यन और अमुल्यन को कहा D.P.T. "दुःख पाया टूरिस्ट" :)
हम सभी यात्री हैं सुख़ की तलाश में निकले हुए। हम जो चीज जैसी है उसको वैसा नहीं पहचान पाते, सामंजस्य पूर्वक नहीं जी पाते हैं तो दुःख पाते हैं, परेशां होते हैं।
इसको हमने सम्मानजनक भाषा दे दिया "Struggle" और इसे परिभाषित भी कर दिया।
Struggle मेरी और दूसरों की मूर्खताओं का परिणाम है प्रकृति में कोई struggle नहीं है।
हर इकाई स्वयं में व्यवस्था है समग्र व्यवस्था में भागीदार है।
सारा Struggle आदमी आदमी के बीच है,
क्या है बीच में?
"आप मुझको नहीं समझते हो?"
"मैं आपको नहीं समझता हूँ इतना ही Struggle है।
तो एक बात समझ में आई....... समझ सबके लिए एक है। चार अवस्थाओं का समझना ही समझ है।
अस्तित्व अपने आप में एक सह अस्तित्व है। हर इकाई अपने में व्यवस्था है समग्र व्यवस्था में भागीदार है और नहीं समझ पाते हैं तो अधिमुल्यन, अवमूल्यन और अमुल्यन करते हैं और परिणाम में दुःखी होते हैं।
तो क्या है रास्ता?
(मध्यस्थ दर्शन पर आधारित शिविर -श्री सोम त्यागी द्वारा प्रस्तुत)

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