
इसको पूरा करने में कितना समय लगेगा? ५ साल, ६ साल या फिर १० साल। यह करके समझ आया कि मुझे यह नहीं चाहिए था।

फिर और कोई मान्यता!
इस प्रकार एक एक मान्यता हमारे जिन्दगी के कई साल ले लेती है जब हम वहां पहुँचते हैं तो हमें पता चलता है कि यह वह नहीं है!... या यह पर्याप्त नहीं है।
तो इस तरह hit n trial करके जिन्दगी को जिया जाये या एक सुनिश्चित मार्ग पर चलकर जिन्दगी जिया जाये। समझकर जीना भी जिन्दगी जीने का राजमार्ग है। सारे समय और क्षमता को बचाकर हम सुन्दर तरीके से जी सके और मुझको वहां पहुँच के लगे मैं यहीं पहुंचना चाहता था।
यही है! यही है! यही है!......
और उसको गुणित भी किया जा सकता है क्योंकि जब तक कोई चीज गुणित नहीं होती हमारे भीतर वह विश्वास नहीं आता है कि यह सही है। सही होगी तो सबकी जरूरत होगी। सबकी जरूरत होगी तो गुणित होगी।
3 comments:
हर चीज़ करके समझना ज़रूरी भी नही है ।
समझ- समझ के भी जो न समझे......
बिना ठोकर के अकल कब किसको आई है......वर्ना ये क्यों कहते कि इतिहास खुद को दोहराता है....
अच्छी तर्क पूर्ण रचना...........
हार्दिक आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
sachmuch jeevan vidhya yahi hai.... aabhar is alag tarah ke blog ke liye
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