
ये कहाँ से आए ?....क्या आप जानना चाहते हैं? तो देखिये "वर्तमान शिक्षा प्रणाली...."
अभी की शिक्षा मानवीय है कि अमानवीय?
यह अमानवीय शिक्षा है!!!
* आप भौतिक शास्त्र, रसायनशास्त्र,इन्जीनियरिंग आदि किसी भी विषय पर कितना भी अच्छा पढ़ाये कुल मिलाकर हम एक पढ़ा लिखा मजदूर तैयार कर रहे हैं जो अंतत: ३ भूतों की सवारी करके किसी ना किसी को शोषण करने के लिए जाने- अनजाने इस system में मजबूर होगा।
इसे जानने से पहले हम यह सारणी देखते हैं:-
पहली स्थिति कहाँ हो रही है? ...
वर्तमान शिक्षा कुछ ऐसे ही उत्पन्न कर रही है।
आज आपको जो कुछ अच्छे लोग दिखाई पड़ते हैं वे अपने पारिवारिक या व्यक्तिगत संस्कार के कारण दिखाई पड़ते हैं नाकि वर्तमान शिक्षा के कारण।
तो समझदार कौन?
"मानव और प्रकृति के साथ तालमेल और सामंजस्यपूर्वक जीने की योग्यता से संपन्न मानव।"
और यही शिक्षा का उद्देश्य भी होना चाहिए।
लेकिन वर्तमान शिक्षा प्रणाली क्या उत्पन्न कर रही है?
पर अब क्या दिखाई दे रहा है? ग्लोबल वार्मिंग, औद्योगिक प्रदुषण ....हर जगह हर तरफ़ जिधर देखो प्रकृति को भारी नुकसान पहुँचाया जा रहा है। यह सब प्रदुषण हमारे पिछले कुछ सालों की कमाई है।
यहाँ पर आपकी ओर एक प्रश्न उठ सकता है कि जनसँख्या इतनी तेजी से बढ़ रही है उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति कहाँ से होगी? इसके लिए प्रकृति के साथ छेड़खानी ज़रूरी है।
हमें अपने जिन्दगी को चलाने के लिए क्या चाहिए? यह जानने के लिए चलिए यह diagram देखते हैं।
"पदार्थ" जो की भरपूर मात्रा में उपलब्ध है तो यहाँ पेड़ पौधों को कोई तकलीफ नहीं जीने में।
चलिए इस समस्या की जड़ तक पहुँचने की कोशिश करते हैं।
पिछले ५० सालों में Formal Education (औपचारिक शिक्षा ) बहुत बढ़ी है।
जिसके बढ़ने के साथ प्रकृति के साथ मानव का और मानव का मानव के साथ सम्बन्ध हमें गंभीर चिंतन की ओर ले जाते हैं।
माँ-बाप अपने बच्चे को क्या यह सोचकर पढ़ाते लिखाते हैं कि बेटा पढ़ लिखकर हमारा सम्मान नहीं करेगा ?
नहीं ना?
एक शिक्षित व्यक्ति से हमें समझदार होने की कामना है ही।
शिक्षित और समझदार व्यक्ति कौन ?
(क्रमश:)
H2 + O2--> 2H2O
हम जानते हैं कि H2 (हाइड्रोज़न) और O२(ऑक्सीजन) का जो सयोंग है एक निश्चित विधि से सयोंग है वह पानी है एक रासायनिक प्रक्रिया है।
ये जो globing warming है इतनी तेजी से बदल रही है कि जो पानी को पानी रहने के लिए जैसा वातावरण चाहिए अगर वैसा नही मिले तो यह प्रक्रिया पलट सकती है।
ऐसी परिस्थिति जरूर बन सकती है जिस प्रकार मानव जी रहा है।
ध्यान दीजिये जब किसी चुम्बक को गर्म किया जाए तो क्या होगा उत्तर आएगा की चुम्बकीय प्रभाव नष्ट हो जाएगा।
और हम इस बात को स्वीकारते हैं कि धरती भी एक बड़ा चुम्बक है अब यदि globle warming( ग्लोबल वार्मिंग )इस तरह बढ़ती रहे और किसी स्तर को यह पर कर जाए तो इस धरती रूपी चुम्बक का क्या होगा ?
पहले इस बारे में बात करने की जरुरत नहीं थी पर अब क्यों? क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग तेजी से बढ़ रहा है।
स्टीफन हॉकिन्स ने कहा है जिस तरह से आदमी धरती पर जी रहा है उसकी अधिकतम आयु १०० साल या ५० साल हो सकती है और आदमी को कोई दूसरा ग्रह तलाश लेना चाहिए जहाँ वह स्थान्तरित हो सके। "
स्थान्तरित होने वाले कौन होंगे ? सभी हो पाएंगे क्या?
कौन कौन हो पायेगा? जिसके पास धन होगा!
**तात्पर्य यह है कि आदमी के द्वारा जो प्रकृति को नुकसान पहुँचाने का फैलाव है, हजारों लोग कि मृत्यु हो जाए यह उतनी बड़ी घटना नहीं है क्योंकि आदमी फ़िर से पैदा होता है उसकी भरपाई हो जायेगी लेकिन ये धरती आदमी के रहने लायक ही नहीं बचेगी तब एक महत्वपूर्ण समस्या आ खड़ी होगी।
क्या यह धरती मानव के रहने लायक बच पायेगी?
शिविर के बारे में आगे और कुछ कहें उसके पहले मैं आप सभी को बाबा जी के बारे में बताना चाहूंगी।
"बाबा जी की शरीर यात्रा मैसूर प्रान्त (भारत) के एक छोटे से गांव अग्रहार में प्रारम्भ हुई, इसलिए वे हैं ऐ.नागराज। अर्थात अग्रहार उनका परिचय। उनके पिता एवं मामा का कुल इस युग के श्रेष्ठतम वेदज्ञ भारतीय आचार्यों में से हैं। श्री नागराज बाबा जी ने school का मुहँ नहीं देखा।
२२ वर्ष की अवस्था में उन्होंने हम्पा (पम्पापुर) की एक गुफा में श्री विद्या का एक पुरश्चरण किया, उससे जो दिव्य प्रेरणा अवतरित हुई, उससे वे कन्नड़ भाषा के विख्यात कवि हो गए। सारी रात हजारों हज़ार लोग मन्त्र मुग्ध होकर उनको सुना करते थे। उसके पहले अपने गुरुदेव, श्रृंगेरी मठ वे शंकराचार्य, श्री चंद्रशेखर भारती के निर्देश से वे अचानक काशीपुरी चल दिए, वहाँ उन्होंने भगवान् शिव की नगरी में गंगा किनारे स्वावलंबी रहकर तप किया एवं भगवान शिव को सर्व शुभ के रूप में स्वीकारा . वहाँ से लौटकर गुरुदेव के आदेश से उन्होंने वंदनीया माँ से विवाह किया. वे मद्रास में प्रसिद्ध उद्योगपति भी रहे, समाज सेवा, धर्म,राजनीति, गृहस्थ, जीवन और समाज की विसंगतियों का व्यापक अनुभव हुआ।
पर वेदांत का एक प्रश्न-कि मुक्ति के बाद क्या? मुक्ति का प्रयोजन क्या है? उनको मथते रहा. वे महात्मा गाँधी, योगी अरविन्द, महर्षि रमण जैसे दिग्गज लोगों से पूछते रहे, तब भी समाधान नहीं मिला.उनके परिवार में पिछले ७०० वर्षों से कोई न कोई व्यक्ति सन्यास लेकर सत्यानुसंधान में लगा रहा. बाबा ने सोचा कि मुझे अपने प्रश्नों का समाधान स्वयं खोजना चाहिए. वे अपना सारा उद्योग समेटकर माताजी के साथ अनुसन्धान के लिए अमरकंटक की एकांत पहाडियों में आ बसे. आज से लगभग ४६ वर्ष पहले वे निश्चय करके आये थे भीख नहीं मांगेंगे. खाने को नहीं था तो पुराने ऋषियों की तरह लगभग तीन वर्ष पेड़ के पत्ते आदि खाकर रहे. शाम ६ बजे से प्रात: ६ बजे तक, कभी कभी प्रतिदिन १७-१८ घंटे तक वे साधनारत रहे।
सन् १९६६ में उनको वेदान्त का अन्तिमसार निर्विकल्प समाधी का अनुभव हुआ. पर प्रश्न का उत्तर अभी बाकी था. अत: पतंजलि के योग सूत्र में वर्णित सयंम का आकाश में उन्होंने अवधान किया, तब सम्पूर्ण अस्तित्व और समग्र व्यवस्था के सारे सूत्र उनके सामने उजागर हो गए. वे अस्तित्व दृष्टा हुए. अस्तित्व दर्शन, जीवन सार्थक सम्पूर्ण, संतृप्त और पूर्ण जागृत हुआ.दृष्टा पद का साक्षात्कार हुआ. सम्पूर्ण दिशा, कोण, परिप्रेक्ष्य आयाम में समाधान प्राप्त हुआ। वे 'अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन' रूपी समाधान को प्राप्त कर संतृप्त हुए. उन्होंने 'मध्यस्थ दर्शन सह-अस्तित्ववाद' का प्रणयन किया. दस वर्षों तक वे सोचते रहे, परीक्षा करते रहे कि मानवजाति को इसकी जरुरत है कि नहीं. आज की अंतहीन समस्याओं के समाधान के लिए इसको अत्यंत उपयोगी जानकर उन्होंने लोगों से इस दर्शन की चर्चा करना प्रारंभ किया.आज भारत के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक,चिन्तक, समाजसेवी,धार्मिक कार्यकर्त्ता, उनके पुण्यमय संपर्क में है. विदेश से भी वैज्ञानिकों का दल उनसे जीवन और जगत के किसी भी विषय पर विचार विमर्श करने आते हैं.इंजीनियर्स, वनस्पति शास्त्री,चिकित्सक,धर्मनेता, कलाकार, विश्व विद्यालय के चांसलर्स, सभी अपने अपने विषयों में चर्चा करके स्तंभित रह जाते हैं. समाधान की रोशनी में बाबाजी भारत के विख्यात आयुर्वेद विद्या के चिकित्सक हैं. सम्पूर्ण भारत से तथा विदेशों से निराश होकर लौटे असाध्य रोगी उनके पास आते हैं और आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों की चिकित्सा से मृत्यु के द्वार तक पहुंचे रोगी भी ठीक हो जाते हैं मै स्वयं इसका उदाहरण हूँ. बाबाजी ने 'समग्र चिकित्सा ज्ञान विज्ञान' की एक नई अवधारणा दी है, जिसे विश्व सम्मलेन में भारतीय डॉक्टरों ने प्रस्तुत किया'।
वे वैज्ञानिकों में सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक, धर्मनेता, चिन्तक, दर्शक,वेदज्ञ, कलाकार,कवि और भारत का एक सामान्य औसत किसान सब एक साथ हैं. स्वभाव में सरल, साहसी, स्वावलंबी, दुनिया में किसी के विरोध की परवाह न करने वाले अस्तित्वदर्शी, जीवन विद्या के मर्मज्ञ, परम सत्य के रूप में ईश्वर को पहचानते हुए एक महापुरुष हैं. उनका कोई साधू वेश नहीं है. वे बिलकुल सादगी से भारत के आम आदमी की तरह रहते हैं.प्रयोजन होने पर सम्पूर्ण से भारत में भ्रमण करते हैं,शेष समय अमरकंटक. वे असामान्य रूप से सामान्य, बिना साधुवेश के अस्तित्वदर्शी, ज्ञानावतार व एक शांत सर्वतोमुखी समाधानकारी व्यक्ति हैं.
(संकलित)
"पूज्य बाबा श्री ऐ.नागराज जी को प्रणाम"
जिन्दगी ने ऐसी करवट ली और मुझे एक रास्ता दिखाया जिस पर मैं चलते जा रही हूँ .....अब पीछे मुड़ने का कोई सवाल ही नहीं .....सारे प्रश्नों के उत्तर मिल गए और सारे भ्रम दूर हो गए। .....शिविर कैसा रहा? यहाँ क्या हुआ? मैंने क्या सिखा आप सभी के साथ बाँटना चाहूंगी।
शिविर अमरकंटक की पहाड़ियों में, प्रकृति के गोद में एक छात्रावास में आयोजित हुआ था।
पहला दिन था ....सभी प्रतिभागियों का परिचय हुआ। यह शिविर सोम भैय्या ने लिया था।
पहले दिन जिन विषयों पर चर्चा हुई निम्नानुसार है:-
*कामना और प्रयास
*मानना नहीं जानना है
*चार अवस्थाओं का होना
*मानवकृत व्यवस्था या अव्यवस्था
*वर्तमान जीवन शैली का विश्लेषण
*शिक्षित और समझदार
*वर्तमान शिक्षा प्रणाली
(क्रमश:)